जासूस क्रुकबॉण्ड - लापता गमराज की तलाश
मेरे द्वारा लिखी गयी कहानी।
क्रुकब्राण्ड और गमराज की तलाश
मुम्बई, सपनों की नगरी। जहाँ पर जो भी आया वो इस शहर का होकर रह गया। यहाँ जिन्दगी मुश्किल भी है आसान भी। जो नया है उसके लिए मुश्किले है, जो पुराना है वो तो इन मुश्किलों का आदि हो कर इसे आसान बना चुका है। कुछ खुशकिस्मत है जो कि अपने तमाम मुश्किलो से लड़ कर अपनी एक अलग दुनिया बना लेते है। यहाँ पर लोग चले जा रहे है, बस अपने मंजिल की ओऱ। यहाँ हर कोई एक सपना लेके आता है, कुछ लोग सपने पूरा कर पाते है, तो कुछ अधूरे सपने के साथ यही पर रह जाते है। कुछ लोग पूरी की पूरी भीड़ जुटा लेते है तो कुछ इसी भीड़ का सदैव हिस्सा बन कर रह जाते है। इसी शहर में ताज होटल है, मरीन ड्राइव, जूहू चौपाटी, फिल्मी सितारों का यहाँ पर जमावड़ा है, बड़े बड़े उद्योगपति भी यहीँ पर रहते है।
इसी शहर में रहता है रात का रक्षक डोगा, जो दिन भर सूरज के रूप में जिम चलाता है तो रात में वो ही सूरज डोगा बनके अपने ताप से अपराधियो मे खलबली मचा देता है।
यहाँ पर गमराज भी है, जो किसी दूसरों के गम नही देख पाता है और मुम्बई में हर किसी के गम को दूर करने की कोशिश करता है। इसलिए तो वो गमराज है। अपने मित्र शंकालू और भैंसे यमुण्डा के साथ लोगो की परेशानी दूर करना उसका रोज का काम है। अपने धुन में मस्त अपना प्यारा गमराज।
लेकिन ये क्या? हमेशा गमराज के साथ दिखाई देने वाला शंकालू आज अकेला क्यों है? और इतना परेशान होके कहाँ जा रहा है। चलिए इसकी परेशानी बाद में देखते है पहले चलते है मुम्बई के कुर्ला के एक चॉल में। यहाँ पर एक पतला लम्बा और दूसरा मोटा आदमी एक रूम नुमा ऑफिस मे मक्खी मार रहे है।
अरे ये तो अपने जासूस क्रुकब्राण्ड और मोटू है। ये मुम्बई में कैसे? चलिए उन्ही से जान लेते है।
ऑफिस के बाहर बोर्ड टँगा था जो कि जाहिर था कि किसी पुराने बोर्ड के रचना को मिटाकर पेन्ट से रंगा गया था। उस पर लिखा था- रूपनगर के मशहूर जासूस। हर केस तो अपना तेज दिमाग से सुलझाने वाले जासूस क्रूकब्राण्ड अब मुम्बई में। डायरेक्ट ऑफिस में ही मिले। फोन करने की जरूरत नही। बोर्ड के नीचे ही ऑफिस है। नोट - हमारी और इस बोर्ड की पूरे शहर भर में कोई और ब्रान्च नही है। धन्यवाद
मोटू- क्या भैया अच्छा खासा रूपनगर में अपना बिजनेस चल रहा था। कितना बढ़िया लगता था। आपको क्या जरूरत पड़ी मुम्बई आने की?
क्रुकबाण्ड- यार मोटू। हमारे छोटे से शहर में जासूसी करने को कुछ था न और न ही अच्छे पैसे मिलते थे। ये सोच कर कि मुम्बई तो बड़ा शहर है , यहाँ कोई बड़ा जासूसी का काम मिल जायेगा और हमारी भी एक बड़ी कम्पनी होगी। जहाँ मैं चेयरमैन और तू टेबलमैन बन जायेगा। पर जरा देखो तो। यहाँ तो आये 1 महीने हो गये। बापू के जेब से चुराकर लाये पैसे भी अब खत्म होने वाले है। पर अभी तक एक भी ढ़ंग का काम न मिला। वो ही चॉल के छोटे मोटे जासूसी के काम, बच्चों लोग का केस का निपटारा, किसी बच्चे का पेन खो गया,, किसी की कॉपी किसी ने चुरा ली। किसी की बॉल गुम हो गयी। अरे इसलिए हम लोग जासूस बने है क्या? मेरे बापू ने सुना तो वो क्या बोलेग? अच्छा भला काम चल रहा था उधर। इतने बड़़े बड़े अपराधियों को जेल पहुँचाने वाले की ये हालत की ऐसे चिन्दी केस लेने पड़ रहे है।
मोटू- सही कहा भैया। आपने अपने जासूसी के कारनामों की अखबारों में छपी कटिग तो यहाँ चिपका दी है. पर इसे देखकर भी कोई न आ रहा है। अब तो लगता है कि फूफा जी को फोन करके माफी माँग लेते है। वो हमें माफ तो कर देगे। भले थोड़े खडूस है, पीटाई भी करेगे पर कम से वहाँ आराम तो करेगे।
क्रुकब्राण्ड- सुन बेटा मोटू। तुझे जाना है जा । मैं तो मुम्बई में नाम कमाकर ही रहूँगा। चाहे कुछ भी हो जाये
मोटू- लेकिन भैया आप भी कंजूस हो। वो फेसबुक वाले आपके पेज का प्रचार करने को पैसा माँग रहे थे उन्हें दे देते तो अभी तक लाइक भी आ जाते और 5-6 बढ़िया केस भी आ जाते।
क्रुकब्राण्ड - अरे मोटू। जब खुद ही लाइक आ रहे तो पैसा क्यों खर्च करना? देख 20 लाइक आ गये फटाफट
मोटू- अरे भैया उसमें तो 2 लाइक मेरे आपके है। बाकी 18 में से 8 तो मेरे ही फेक अकाउन्ट है। बाकी 10 तो मैंने चॉल के निखट्टु लोगो से जबर्दस्ती लाइक करवाये है। अभी अपने रिश्तेदार लोग को भी भेजा था, वो तो इतने बदतमीज निकले के लाइक करने के बजाय उल्टा पेज ही रिपोर्ट कर दिया। किसी तरह पेज बन्द होने से बचाया है। आजकल ऑनलाइन का जमाना है। जितना प्रचार, उतना नाम। मैं तो ट्विटर, इंस्ट्राग्राम. शेयरचैट पर भी अकाउंट बनाने की सोच रहा हूँ।
तब तक दरवाजे पर दस्तक होती है।
मोटू- जो भी है अन्दर आ जायो भैया। दरवाजा खुला है।
आवाज आती है- अन्दर कौन बे, हवालात में सड़ा दूँगा सालों।
क्रमशः
Arman
27-Nov-2021 12:06 AM
Superb
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Zeba Islam
21-Nov-2021 06:03 PM
Bhot ache
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Author sid
26-Jun-2021 12:58 AM
Next part plz
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